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“” आज की नारी “”(महिला दिवस पर विशेष)

""मनन से ""
""मनन से ""
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230303

इस देश में न जाने नारियों का रिश्ता क्या है ??

किसी के लिए माँ है , तो किसी के लिए बहन है , और ये तो बात हुई नारियो के रिश्ते के अहम् संबंध की .

पर बात करे तो हमारे यहाँ नारियों को देवी का दर्ज़ा दिया जाता है , यहाँ माँ कही जाने वाली नारी कही न कही अपमान और गुलामी जैसा जीवन जीने लगी है .
ऐसा हम वर्तमान में देख रहे है ,सुरक्षित कौन महिला है ?? , आज के समय में जो , किसी के प्रोटेक्शन में है , या वो जो सब कुछ अकेली ही कर रही है .
कुछ महिलाएँ अभी भी ऐसी है जिनके पास सब कुछ है , पर असहाय, लाचार , घर की बहु बनकर रह रही है ,

जिनको कोई पूछने वाला तक नहीं है , कुछ महिलाएँ घटनाओं का शिकार जैसे एसिड फेंकने वाली ,दुष्कर्म , और ना जाने क्या -क्या ??

कई महिलाऐं घरेलु हिंसा में पिस रही है । गरीबी , असाक्षरता , और वंश की आगें की पीढ़ियों के कारण आज कन्या भ्रूण हत्याएँ हो रही है ।
बालिकाओं को जन्म देने से पहले कई लोग सोच में पड़ रहे हैं , कि जन्म दें तो क्या मिलेगा ??? ये सोच शहरियों की अपेक्षा ग्रामीणों में
ज्यादा है ।
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि , शहरी ऐसा नहीं करते । हम पुरुषो की तुलना में महिलाओं का अनुपात घट रहा है , क्योंकि महिलाएँ
घट रही हैं .
दुष्कर्म की शिकार बालिकाएं या फिर कहे तो महिलाएँ जीवन भर बदनामी की जंजीरों में बंध जाती है , तो कहीं न कहीं एक बात उनके मन

मैं जरूर रहती है कि , इस जीवन से तो अच्छा है हम मर जाते . तो इसके कारण इनके मन मैं कई बार आत्महत्या का ख्याल भी आता है ,

और कई महिलायें जो दुष्कर्म , घरेलु हिंसा और न जाने किन – किन घाटनाओं से जूझने के बाद ये कदम बड़ी सरलता से उठा भी लेती हैं । यदि नारी सब कुछ बड़ी सरलता से सह सकती है , तो वह उससे भी सहज अपनी जान दे सकती है .. जब वह इतनी पीड़ा को आसानी से बिना कुछ बोले अपने मन में रखती है तो उसे जान देने में कोई परेशानी नहीं होती ..

अगर किसी के घर महिला है तो आज कुछ लोग उन्हें कहीं लाने – ले जाने की जिम्मेदारी लेने लगे है , वह सोचतें हैं की आखिर विश्वास करें , तो किस पर करें , लिहाज़ा समय को देखते हुए ये सही भी है । आज महिलाओं की इज्जत या तो बिक रही है , या तो दुष्कर्म कर लूटी जा रही है , बस ये ही महौल चारो ओर दिखाई दे रहा है ।
इनमे या तो नाब़ालिक है या बड़ी उम्र की महिलाएँ है , सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी ?? ये भी कोई नहीं जानता , पर हाँ इतना जरुर है खुद महिलाओं को जागरूक होना जरुरी है ।

समय का प्रतिबन्ध आवश्यक है , पर एसा क्यों करें ???

दूसरी तरफ हम कहतें है कि पुरुष की तुलना में महिलाऐं साथ- साथ जीवन जीयें तो ऐसा क्यों होता है ?? , कि वे ऐसा नहीं कर पाती ???
बस ऐसा लगने लगा है , कि महिलाऐं केवल अपना जीवन जी रही है , क्योंकि उन्होंने जन्म लिया है।

इस सन्दर्भ के बाद मैंने भारत की तमाम नारियों के लिए चार पंक्तियाँ लिखी हैं ..देखिये एक नारी क्या कहती है ??

आज की नारी


नहीं चाहती , मुझसे प्रेम करो , यूँ प्रेम के बल इस्तेमाल करो ..

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न ही कोई ज्वाला हूँ , न ही कोई देवी हूँ ..मैं बस एक साधारण नारी हूँ ..
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कम से कम अब तो एहसान करो ..
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चाह नहीं अब उन रिश्तों की , इस धरती पर ..
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चाह नहीं अब और जीने की , इस धरती पर ..
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कम से कम अब तो विश्वास करो ..
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नहीं लालसा कुछ भी , सर्वश्व तुम्हारा है ..
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कम से कम , अब तो , स्वीकार करो ..
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और क्या कहती है नारी देखिये …
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आज सुरक्षित नहीं अपने घर में , बाहर की क्या बात करूँ ..
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अपने , पराये लगते है , जब बर्ताव के उनकी बात करूँ …
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जब समझ ही लिया पराया मुझको , फिर रिश्तों की क्या बात करूँ ..
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जब जाती हूँ इस भीड़ में , टकटकी इनकी लग जाती है ..
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ये वासना के भूंखे , फिर बताओ मैँ किस पर विश्वास करूँ ..
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आबरू मेरी छिन जाती है , फिर बताओ मै किसका विरोध करूँ ??
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साथ न देता कोई भी , मैँ अकेले किस पर वार करूँ ..
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यहीं मेरी आज की गाथा , बताओ असहाय मैँ क्या करूँ ..
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इसके बाद क्या होता है ?? जब मैँ नहीं तो ………………….
इसकी क्या मैँ बात करूँ ??
इसकी क्या मैँ बात करूँ ??
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नहीं जीना मुझको अब , पर मरने की क्या बात करूँ ..
मरने की क्या बात करूँ …



यह आज की नारियों की व्यथा और ये घटनाएँ जो आपके सामने मैंने चाहे कविता के रूप में हो या लेख में यह पूरा मंथन और यह सभी पंक्तियाँ मैंने अपने आस-पड़ोस की नारियों में सामंजस्य बैठा कर रची हैं …
धन्यवाद
आदित्य उपाध्याय

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