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“”बेटियाँ “”

""मनन से ""
""मनन से ""
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बेटियाँ जो केवल एक शब्द नहीं है , इस शब्द में वो भावनाएँ हैं , जो शायद किसी के लिए माँ है , तो किसी कि बहिन है , तो किसी के लिए उसकी धर्मपत्नी है .

ये तो बात है उन तमाम रिश्तों की जो बेटियों से शुरू हुए हैं , और अब हम दूसरे पहलु कि ओर चले तो हम सोचने

में मजबूर हो सकते हैं या उस बारे में हम

सोच ही नहीं पा रहे हैं लगता है की उस मुद्दे को हम बड़ी सहजता से ले रहे है , जी हाँ हमारे देश भारत जहाँ नारियों

को देवी का दर्जा दिया जाता है , वहीँ दूसरी

ओरउनका सम्मान , उनकी इज्जत छीनी जा रही है . और हम सब बस इन कृत्यों को देखकर और सुनकर

नज़रअंदाज और अनसुना कर रहे हैं . ऐसा कब तक

चलेगाइस नयी पीढ़ी को ये सब सोचना आवश्यक है , और मैं खुद एक युवा इसी पीढ़ी का युवक हूँ , और मैं ये

नहीं मानता की केवल शिक्षा अर्जित कर लेने से

अपराध कम नहीं हो सकते , इसके लिए हमारा एक आतंरिक मन भी काम करता है जो हमे सुझाव देता है , जब

हमे किसी भी समय उसकी जरुरत होती है .

“”व्यक्ति या इंसान की फितरत या नियत तब तक नहीं बदल सकती जब तक उसने स्वयं में प्रयास न किया हो

कोई लाख प्रयत्न क्यों न करले शराबी की शराब नहीं छूट सकती , जब तक स्वयं शराबी प्रयत्न न करे “””

आप सोच रहे होंगे की में बेटियों की बात करते-करते अपराध पर कहा से आ गया , पर आज

बेटियों की इस हालत या आज हो रही बेटियों की कमी का कारण

कहीं न कहीं अपराध ही हैं , जी हाँ अपराधिक गतिविधियों के चलते ही आज बेटियों पर विपदा

आ गयी है . चाहे वो कन्या-भ्रूण , हो या दुष्कर्म जैसी अप्रिय घटना

हो , बात हर रूप से अपराधिक गतिविधियों पर आती है .

मैं ये नहीं कह रहा कि हमने प्रयास नहीं किये , पर कहीं न कहीं वे प्रयास सफल नहीं दिख रहे हैं ,

प्रयासो को सफल कारण होगा तब जाकर बेटियाँ सुरक्षित हो पायेंगी .

जहाँ हम बेटियों को , बेटो के साथ-साथ कदम बढ़ाने का बोलते हैं , वहीँ दूसरी ओर हम उन्हें बाहर निकलने के लिए भी डरते हैं , क्योंकि हमे खुद भरोसा नहीं है

कि , समय ख़राब है और मन में यही बात चलती है कि कहीं कुछ उल्टा सीधा न हो जाये .

बस मैं यहीं कहना चाहता हूँ कि बेटियों कि सुरक्षा के लिए कदम बढ़ाएँ और कम से कम गलत को तो रोके .

लगता है आप का भलीभाँति परिचय नहीं हुआ है बेटियों से चलिए मेरी कुछिक पंक्तियाँ उन तमाम मेरी बहनो एवं बेटियों के लिए जो देश का सर्वस्व हैं …….

“””बेटियाँ “””

पिता का संसार , माँ की ममता हैं बेटियाँ ..

जीवन का सार , ज़िन्दगी का एहसास हैं बेटियाँ ….

पर्वत की ऊँचाई , तो गर्त सी गहराई है बेटियाँ….

किसी की माँ , तो किसी की बहिन हैं बेटियाँ ….

रिश्ता कोई भी , शुरुआत रिश्ते की हैं बेटियाँ ..

एक चंचलता , एक मुस्कान की आस है बेटियाँ …

स्वयं का चरित्र , तो चरित्र का इतिहास हैं बेटियाँ …

किसी की तन्हाई , तो किसी की चाहत हैं बेटियाँ …

पिता का प्यार , तो माँ के संस्कार हैं बेटियाँ …

जब विदा हो जाती हैं , तो अश्रु दे जाती हैं बेटियाँ …

अंत में-

बेटियाँ गुड़िया सी , एक नन्ही परी हैं …

एक चंचल सी , एक हल्की सी हँसी हैं …..

बेटियाँ इस जमी की , बेटियों से ज़मीं है …

धन्यवाद

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