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इम्तिहान :मोहब्बत का (contest)

""मनन से ""
""मनन से ""
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मोहब्बत मतीन सागर सी ,
कर बैठा मैं अफ़सोस ,

एक आलम पीछे था , दूजा तेरा आगोश ..

तेरा एतबार था मुझे , तू कर न पाया एहसास ..

खुमारी ये तेरे उल्फत कि दूर न जाने कि हालत सी …

तेरे एक दीदार कि ख्वाहिश थी , तेरा अक्श ही मिल जाए ख़ुशी थी …

कैफियत नहीं तुझे गम देने की …

और इख्तियार नहीं तुझसे कुछ बोल पाने की …

तू ठहरी आफ़ताब सी , और आमाल मैं करता रहा तुझे पाने का ..

तू बनके फ़ैयाज़ मुझे , ज़िन्दगी दे दे ,

न कर सके तू इतना , तो मेरी ज़िन्दगी ले ले ..

और करता हूँ इबादत खुदा से ये ,

मेरी ज़िन्दगी के बदले , तुझे मेरी उम्र दे दे …

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