""मनन से ""
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एक आलम पीछे था , दूजा तेरा आगोश ..
तेरा एतबार था मुझे , तू कर न पाया एहसास ..
खुमारी ये तेरे उल्फत कि दूर न जाने कि हालत सी …
तेरे एक दीदार कि ख्वाहिश थी , तेरा अक्श ही मिल जाए ख़ुशी थी …
कैफियत नहीं तुझे गम देने की …
और इख्तियार नहीं तुझसे कुछ बोल पाने की …
तू ठहरी आफ़ताब सी , और आमाल मैं करता रहा तुझे पाने का ..
तू बनके फ़ैयाज़ मुझे , ज़िन्दगी दे दे ,
न कर सके तू इतना , तो मेरी ज़िन्दगी ले ले ..
और करता हूँ इबादत खुदा से ये ,
मेरी ज़िन्दगी के बदले , तुझे मेरी उम्र दे दे …
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