वो ही वो नज़र आने लगे हर एक नज़ारे में .. कम्बखत क्या कमी रह गयी उन्हें पाने में .. तेरी चाहत का नशा कुछ यूँ चढ़ा मुझ पर , कि आदत सी हो गयी .. उनकी आँख जो उठी तो नज़ाकत सी हो गयी .. मेरी तक़दीर में वो नहीं शायद , लेकिन उनकी हर एक बात आदत सी हो गयी ..
फिर रुख करिये मोहब्बत के मोड़ पर –
कि बेजुबानी का आलम था .. कारवां-ए-मोहब्बत वक्त था .. कि बेजुबानी अफ़सोस में बदल गयी .. मेरी चाहत कि भनक उनको थी ही नहीं शायद , दर्द हमें था हमारी चाहत का वे तो बेदर्द ही चले गए …
अब क्या देखिये गौर करियेगा –
हम अकेले थे , वक्त तन्हा था . बेकरारी का आलम था , तन्हाईयों का सिलसिला जारी था .. लेकिन अब भी मेरी तन्हाईयों को ये गुमान था .. कि उनका हर एक नज़र में होना जारी था .. बस मुझे भी इसी बात का एहसास था , कि वो नहीं तो क्या था – कि वो नहीं तो क्या था – लेकिन अभी भी उनका अक्श मेरे साथ था मेरे साथ था …..
आहट: यादों कि
जब दस्तक ये होती है , मन विचलित क्यों होता है ..
कोई जब दूर होता है तो उसका जाना सताता है … बस उसकी ही यादों में पल-पल रोना आता है .. मेरी आँखों में आँशु है , मगर ये रो नहीं पाती … मेरी हक़ीक़त को बस कल्पनाओं का सहारा है .. ये वेदना समझो किसी से कही नहीं जाती .. हक़ीक़त को हक़ीक़त मान जीता हूँ , तो जी नहीं पाती … सोचकर देख लिया मैने , तो चिंता गहन हो जाती है .. इस बेदर्द पीड़ा को अब , सहा नहीं जाता .. मरकर देख लिया मैने , अब जिन्दा रह नहीं पाता .. ज़िन्दगी उसकी नहीं केवल , अब में सोच लेता हूँ .. करना कुछ उर होता है , और हो कुछ और जाता है .. मय का प्याला भी पीकर मैँ , अब सब छोड़ आता हूँ .. ये मन विचलन का बिंदु है , इसे समझा नहीं जाता … कि किसी कि चाहत मैँ , इंसा खुद को भूल जाता है .. ये आकर्षण नहीं सुनले मैँ , तुझसे प्यार करता हूँ .. प्यार खिलोने से नहीं , तो खिलौना भी टूट जाता है .. तुझमे जान होकर भी , तू ये जान नहीं पाता … अभी समझ ले इस मोहबत को , थोड़ी सी देर मैँ तो क्या से क्या हो जाता है….
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