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प्रणय काव्य में:(कवितायेँ प्रेम की)(contest)

""मनन से ""
""मनन से ""
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प्रेम की वास्तविकता यही है की पहले प्रेम को समझना आवश्यक है ..प्रेम किसी भी रूप में हो सकता है ..

प्रेम आखिर है क्या ??


“” एक – दूसरे की फिकर है , प्रेम .

आशाओं की डगर है , प्रेम .

विश्वास की एक डोर है , प्रेम .

माँ की ममता है , प्रेम .

पिता का एहसास है , प्रेम.

किसी का समर्थन है , प्रेम .

किसी की चिंता है , प्रेम .

किसी की अच्छी कामना है , प्रेम .

किसी के दुःख को अपनाने में है , प्रेम .

बुराई पर जीत है , प्रेम .

एक अनंत परिभाषा है , प्रेम .

बस ढूंढने की अभिलाषा है , प्रेम .”

शब्दों से न हो बयां


बयां ये दास्ताँ कैसे करूँ ?

बेजुबानी ये तेरी कैसे सहूँ ?

इंकार – ए- मोहब्बत चाहत नहीं , कम्बखत कहूं तो कैसे कहूं ?

लफ्ज़ फीके पढ़ जाते हैं अक्सर मोहब्बत में .

लेकिन इज़हार -ए- मोहब्बत कैसे करूँ ?

वो तेरा चेहरा आयना बनकर आ जाता है जब कभी ,

उसको देखकर , तुझको पाने लगते है हम कभी ,

प्यारी सी मुस्कान हम दे देते हैं कभी .

और हम बोलकर भी बोल न पातें हैं कभी .

फिरसे खो जाते हैं ये लफ्ज़ कहीं .

लफ्ज़-ए-बयां मोहब्बत नहीं ,

धड़कनो का मिलना चाहत नहीं ,

तुझको हासिल करना मेरा मकसद नहीं ,

मुझे तो रहना है , तेरे संग ही सही ,

हिय के मिलन से , हिय तक सही ,

दर्द रहे तेरा जो , वो मेरा भी सही ,

करना है हर वो काम जो तेरे साथ सही ,

में कहता हूँ लफ्ज़-ए-बयां मोहब्बत नहीं

मोहब्बत नहीं ….

लगता है दर्द का का नाता मोहब्बत से बहुत गहरा है , जी हाँ मोहब्बत में दर्द न हो तो लगता है मोहब्बत अधूरी है ..तो एक कविता इस पर भी

एक अरसा हो गया है तेरे बिना


एक अरसा हो गया है , देखे बिना .
एक तेरी चाहत को पाये बिना .
मुस्कान को तेरी अपनाएं बिना , मेरे दिल से पूछ क्या हाल है देखे बिना .
इत्तफ़ाक़ भी नहीं तक़दीर क्या तेरे बिना .
ये बेदर्दी भी कैसी तेरे बिना .
अब एक झलक भी नहीं तेरी , तेरे बिना .
मेरी एक मुस्कान भी ज्यादा है , तेरे बिना .
एक अरसा हो गया है , देखे बिना .
ख़ुशी का पता नहीं , गम भी पूरे नहीं , तेरे बिना .
बेबफाई क्या आँख उठी भी नहीं , तेरे बिना .
दुनिया से बेगाना हूँ अब , तेरे बिना
और अब एक नगमा क्या मोहब्बत का , तेरे बिना .
एक अरसा हो गया है , तेरे बिना .
एक अरसा हो गया है , देखे बिना .
वो इश्क़ ही क्या , महबूब के बिना .
और अब खुद में बिखर सा गया हूँ , तेरे बिना .
कायनात भी पलट सकता था , पर अब क्या , तेरे बिना .
जो सजाये थे सपने , पर अब सपने ही क्या , तेरे बिना .
मुकद्दर को पाकर अब सिकंदर क्या , तेरे बिना.
एक अरसा हो गया है , देखे बिना
एक अरसा हो गया है , तेरे बिना

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