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राह:एक चित्रण(1)

""मनन से ""
""मनन से ""
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आइये देखते हैं ,राह एक चित्रण जिसमे मैंने ,मानव रुपी प्राणी पर थोडा शोध करते हुए ….इस राह को अपने भावों से संजोया है !!!!!चलिए चलते हैं ,और देखते हैं आगे क्या होगा….????

मनुष्य इस धरा पर केवल प्राणी मात्र नहीं है,अपितु सबसे प्रभावशाली,बुद्धिमान ,बलशाली और धरती का रक्षक प्राणी है…हमारे इस जीवन मैं
अक्सर देखा जाता है…की मनुष्य मिलकर रहने या साझा करने का बड़ा शौक़ीन होता है…यह सदेव देखा जाता है की मनुष्य किसी भी रोमांच या स्वार्थ मैं पड़कर,अपना समुदाय बढाने का अथक प्रयास करता है..और ऐसा देखा जाता है जो प्रयास वो करता है,तो उसे ऐसा प्रतीत होता है मानो वो सफल हो गया हो…पर न जाने वह ये कहाँ भूल जाता है,कि इन पाँच चीजों के होते हुए(लोभ,काम,क्रोध,इर्ष्या,मोह) वह जो सफलता मान लेता है,कि जो वह साझा या अपना समुदाय बढ़ाने गया था वे दरअसल इनकी वजह से हुआ है..और यह आज के समय मैं वास्तविकता है..,जहाँ मनुष्य को किसी न किसी तरफ से हार झेलनी है..इसमें किसी कि जीत है तो किसी कि हार है,और आप दोनों ही एक मिजाज़ के हैं तो इस खेल मैं दिक्कत आना नामुमकिन है ,पर इन इन्द्रियों पर किसका वश चला है,और इनका वश यदि चला है तो इतिहास गवाह है,कि हमेशा व्यक्ति विशेष को असफलता ही मिली है…क्या होता है आप किसी के समक्ष कोई बात रखतें हैं तो कभी-कभी उस व्यक्ति को वो बात खटक जाती है,और इसका असर बहुत अच्छा नहीं होता है…यहाँ पे स्वार्थ रुपी राक्षस कार्य करता है ,जिसके फलतः आप न चाहते हुए भी उसकी बात सुनते हो या सिरे से खारिज कर देते हो…
यहाँ बस यही खेल चलना हैं ,हम सब उस ईस्वर कि कटपुतलियाँ हैं,बस उसने हमारी परीक्षा और दुनियां के सारे आडंम्बरो से बचने और उनमे लीन होने के लिए ये एक खेल तैयार किया है जो इन इन्द्रियों रुपी परीक्षा मैं पास हो जाता है तो वह इस मायाबी संसार से शीघ्र मुक्ति पाकर उस ईस्वर के चरण कमलो मैं अपना निर्वाह करता है…बस जो है यही है उस ईस्वर को दोष देना छोड़ दो क्योकि वास्तविकता यही है कि आप खुद ही इतने सक्षम नहीं हुए कि आप ईस्वर को दोष दे सकें ,आप का आज ,कल और वो आने वाला पल सब आप पर निर्भर है ईस्वर केवल एक मार्ग रुपी खड़ा है आपको उजियाला दिखने पर समझना आपको है कि आप इस खेल मैं क्या करते हैं….यहाँ पर कोई न कोई इन पाँच चीजों से कही न कही घिरा हुआ है,तो कोई पांचो को एक साथ ग्रहण किये बैठा है…ईस्वर ये भी नहीं कहता कि आप किसी के कार्य मैं दखल दो ,बल्कि ईस्वर क्रेहता है कि कार्य ही ऐसे न करो कि किसी को रोकना टोकना पड़े….बल्कि एक सहारा यदि चाहिए तो तू हमेशा खड़े रहना पर कुछ कहना मत ,क्योकि वाणी जब अभिशाप रुपी निकलती है तो अच्छी -अच्छी बातें बिगड़ जाती हैं…बस मेरा मानना ये है कि आप जब तक इन इन्द्रियों को काबू मैं जब तक नि कर लेते जब तक हम ऐसे ही लड़ते,झगड़ते ,रहेंगे जिसका अंत सिर्फ और सिर्फ विनाश है…..(सोचिये,समझिये और जरुर बताइए कि मैं कहा तक सही हूँ….,आप सभी से छोटा हूँ,और क्षमाप्रार्थी हूँ कुछ भी त्रुटी हो तो)अपने भाव जरुर व्यक्त करे और गौर से पड़े….

(आगें राह:एक चित्रण २,आपकी प्रतिक्रिया मिलने पर)

(ADITYA UPADHYAY)
धन्यवाद…

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