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एक आँगन है मन का, एक मन मैं है आँगन……..
एक बंधन है प्रेम का, एक प्रेम मैं है बंधन…..
संस्कारों की की परिभाषा का , यहाँ उद्गम हुआ नया…..
विश्वासों की नदियों का, यहाँ फैलाव हुआ नया…
हर एक खुशबू इन गलियों मैं…
हर रोज गाती कुछ नया …….
यहाँ गंगा की ओट है ,तो नर्मदा की है छाया…
ब्रम्हपुत्र का स्नेह है, तो वही सरस्वती की माया…
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कहीं अंग्रेजो का बहिष्कार है…
कहीं मुगलों का राज है…….
कहीं स्त्री का प्रसार है..
कहीं बहुत पुरानी आग है…
कहीं यादों का संसार है…
कहीं शिक्षा की शुरुआत है…
कहीं वनों की भरमार है….
कहीं पशुओं का आवाश है..
कहीं सुन्दरता का आधार है…
कही स्वर्ग का वाश है….
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शब्दों की पूर्ति नहीं जहाँ,,,,
हम निवास करते हैं वहाँ…..
एस हमारा राष्ट्र महान….
जिसका व्यख्यान नहीं आसान….
यह देश इतना ही है ….बलवान
जय हिन्द….ADITYA UPADHYAY
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